चाणक्य नीति
Ø आपसे दूर रह कर भी दूर नही है और वही जो आपके मन मे नही है वह आपके नजदीक रहकर भी दूर है.
Ø एक अनपढ़ व्यक्ति का जीवन उसी तरह होता है जैसे की किसी कुत्ते की पूछ जो न ही उसके पीछे का भाग ढकती है और न ही उसे कीड़ो से बचाती है.
Ø कोई जंगल सारा जैसे एक सुगंध भरे वृक्ष से महक जाता है उसी तरह एक गुणवान पुत्र से सारे कुल का नाम बढता है.
Ø खुद का अपमान करा के जीने से तो अच्छा है मर जाना क्योकि प्राणों को त्यागने से एक ही बार कष्ट होता है पर अपमानित होकर जिंदा रहने से बार-बार कष्ट होता है.
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Ø कोई भी शिक्षक कभी साधारण नही होता प्रलय और निर्माण उसकी गोद मे पलते है.
Ø सभी प्रकार के डरो में सबसे बड़ा डर बदनामी का होता है.
Ø बुद्धिमान व्यक्ति का कोई दुश्मन नहीं होता.
Ø दुश्मन द्वारा अगर मधुर व्यवहार किया जाये तो उसे दोष मुक्त नही समझना चाहिए.
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Ø जो व्यक्ति शक्ति न होने पर मन में हार नहीं मानता उसे संसार की कोई भी ताकत परास्त नहीं कर सकती.
Ø किसी भी अवस्था में सबसे पहले माँ को भोजन कराना चाहियें.
Ø बहुत से गुणो के होने के बाद भी सिर्फ एक दोष सब कुछ नष्ट कर सकता है.
Ø अगर कुबेर भी अपनी आय से ज्यादा खर्च करने लगे तो वह भी कंगाल हो जायेगा.
Ø दण्ड का डर नहीं होने से लोग गलत कार्य करने लग जाते है.
Ø कभी भी अपनी कमजोरी को खुद उजागर न करो.
Ø कोई भी व्यक्ति ऊँचे स्थान पर बैठकर ऊँचा नहीं हो जाता बल्कि हमेशा अपने गुणों से ऊँचा होता है.
Ø जो तुम्हारी बात को सुनते हुए इधर-उधर देखे उस आदमी पर कभी भी विश्वास न करे.
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Ø बुद्धि से पैसा कमाया जा सकता है,पैसे से बुद्धि नहीं.
Ø दूसरो की गलतियो से सीखो अपने ही ऊपर प्रयोग करके सीखने पर तुम्हारी आयु कम पड़ जायेंगी.
Ø डर को नजदीक न आने दो अगर यह नजदीक आ जाय तो इस पर हमला कर दो.
Ø मुर्ख लोगो से वाद-विवाद नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से हम अपना ही समय नष्ट करते है.
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Ø आलसी मनुष्य का वर्तमान और भविष्य नही होता.
Ø भाग्य उनका साथ देता है जो कठिन परिस्थितयो का सामना करके भी अपने लक्ष्य के प्रति ढृढ रहते है.
Ø मनुष्य स्वयं ही अपने कर्मो के दवारा जीवन मे दुःख को बुलाता है.
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