मकर संक्रान्ति का महत्व
शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि अर्थात्
नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का
प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि
धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान
सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की
प्राप्ति करवाता है। जैसा कि निम्न श्लोक से स्पष्ठ होता है-
माघे
मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम।
स
भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥
ऐसी मान्यता है कि
इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से
मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं।
चूँकि शनिदेव मकर
राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता
है। महाभारत काल
में भीष्म पितामह ने अपनी देह
त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का ही चयन
किया था। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी
भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम
से होती हुई सागर में
जाकर मिली थीं।
मकर संक्रांति के दिन सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में परिवर्तन को यानि मकर राशि में प्रवेश करने पर दिन बढ़ने लगता है और रात की अवधि कम होना शुरू हो जाती है इस अवसर
पर लोग मूंगफली, तिल की बनी हुई गजक और रेवड़ियाँ आपस में बाँटकर खुशियाँ मनाते हैं।
पर लोग मूंगफली, तिल की बनी हुई गजक और रेवड़ियाँ आपस में बाँटकर खुशियाँ मनाते हैं।
सम्पूर्ण भारत में
मकर संक्रान्ति विभिन्न रूपों में मनाया जाता है। विभिन्न प्रान्तों में इस त्योहार
को मनाने के जितने अधिक रूप प्रचलित हैं उतने किसी अन्य पर्व में नहीं।