28 मार्च 2017


नवरात्र मां दुर्गा के प्रति आस्था और विश्वास प्रकट करने वाला पर्व है। इस दौरान माता के भक्त नौ दिनों तक तप,जप जैसे विभिन्न अनुष्ठानों से माता को प्रसन्न कर उनसे आशीर्वाद मांगते है।

चैत्र नवरात्र में नौ दिन के दौरान बहुत ही विधि-विधान से मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-उपासना का शास्त्रों में विधान है।तो आइए जानते हैं प्रथम देवी शैलपुत्री के स्वरूप के बारे में। देवी दुर्गा के नौ रूपों में से एक हैं 'शैलपुत्री' जिनको मां का पहला स्वरूप कहा गया है। 

पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में पैदा होने के कारण इनका नाम 'शैलपुत्री' पड़ा। नवरात्र-पूजन के पहले दिन मां के शैलपुत्री रूप की पूजा और उपासना की जाती है। मां के इस रूप में दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है।

शास्त्रों के अनुसार, नवरात्रि के प्रथम दिन साधक और योगी देवी शैलपुत्री की आराधना कर अपने चित्त और मन को मूलाधार चक्र पर केंद्रित करते हैं


वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥






11 मार्च 2017

There is a very beautiful story in the life of Nanak

There is a very beautiful story in the life of Nanak, another great mystic of the same calibre as Kabir.

Nanak went to Mecca; he traveled with some Mohammedan travelers who were on a pilgrimage. They reached Mecca, the holy stone of Kaaba. It was evening and the sun was setting, and they were very tired; and Nanak immediately fell asleep. The travelers, the companions, were very much surprised. They used to think of Nanak as a very holy man, but he was doing something stupid: his legs were towards the Kaaba when he lay down and fell asleep. They became very much afraid; this is a sacrilege.
And by the time they could do something about it, the chief priest came, and he said, ”Who is this man? Is he an atheist, he does not believe in God? He does not seem to be a Muslim. Throw him out of here!” All this noise and talk, and Nanak opened his eyes, and he said, ”What is the matter?”
They said, ”This cannot be allowed. Your legs are towards Kaaba, and this is a sin.” Nanak laughed uproariously, and he said, ”You can put my legs anywhere you like, but, one thing before you do it, tell me if this is not so: wherever my legs are, they will always point towards God – because he is everywhere.”
Up to this point, the story seems to be absolutely realistic; then it becomes a parable. The priest was very angry; he took hold of the feet of Nanak and turned his feet away from Kaaba. And the parable says Kaaba turned towards Nanak’s feet. And he moved him in every direction, and Kaaba turned to that direction.
Now, it is a parable; I don’t say now it is realistic. Half the story seems to be exactly right. The other part seems to be very poetic – true, but not factual. It is very significant though. God is everywhere. Once you have found him within, you will find him everywhere. Then you cannot find a place where he is not.
But don’t start the journey from the outward. Don’t start going to Kaaba and Kailash, to the temple and the mosque; otherwise you have taken a wrong step. And one wrong step leads to another. You start imagining.            Osho

10 मार्च 2017

प्रेम परमात्मा की छाया

🌹🌹प्रेम परमात्मा की छाया🌹🌹


मुल्ला नसरुद्दीन का एक मित्र उससे मिलने आया।
घोड़े से उतर ही रहा था कि नसरुद्दीन बाहर निकला।
उस मित्र ने कहा, क्या तुम कहीं बाहर जा रहे हो?
मैं बीस साल बाद मिलने आया हूं!
नसरुद्दीन ने कहा कि तुम रुको,
विश्राम करो, नहाओ धोओ, भोजन करो,
तब तक मैं आता हूं।
मैंने दोत्तीन जगह जाने का पहले ही निश्चय कर लिया है,
उनको खबर भी कर दी, वे मेरी राह देखते होंगे।
मित्र ने कहा, इतने दिन बाद मिला हूं,
मैं तुम्हें क्षणभर को छोड़ना नहीं चाहता,
मैं भी साथ चलता हूं। लेकिन मेरे कपड़े गंदे हैं,
यात्रा में धूल से भर गए हैं, तुम मुझे दूसरे कपड़े दे दो।
नसरुद्दीन को सम्राट ने कपड़े भेंट किए थे एक बार।
वे उसने संभाल कर रखे थे, किसी मौके पर पहनेगा।
पहने कभी नहीं थे। वही कपड़े देने योग्य मालूम पड़े।
दे तो दिए, मित्र ने उसकी शानदार पगड़ी पहनी,
कोट पहना, चूड़ीदार पायजामा पहना, जूते पहने,
जब मित्र पहन कर तैयार हुआ तो नसरुद्दीन को ईष्या लगी।
कि इतने सुंदर कपड़े, इतनी सुंदर पगड़ी,
ऐसे शानदार जूते, मैं रखे ही बैठा रहा,
मैंने अब तक पहने ही नहीं! और आज उसे पहनवा दिए।
उसे खलने लगी बात।
वह उसके सामने नौकर चाकर मालूम होने लगा।
अपने ही मित्र के सामने। अपने ही कपड़े।
और अपने ही कपड़ों के कारण नौकर मालूम होने लगा।
पहली ही जगह पहुंचे,
सब की नजरें मित्र पर पड़ीं।
दुनिया में आदमियों को कौन देखता है,
कपड़ों को लोग देखते हैं।
पूछा परिवार के लोगों ने : आप कौन हैं?
नसरुद्दीन को चोट लगी।
चोट लगनी स्वाभाविक थी।
आया है नसरुद्दीन,
उसकी तो कोई पूछत्ताछ नहीं, आप कौन हैं!
बड़े स्वागत समारोह से मित्र को बिठाला गया।
नसरुद्दीन ने कहा, यह हैं मेरे मित्र जमाल।
बड़े पुराने मित्र हैं। रहे कपड़े, सो कपड़े मेरे हैं।
मित्र को तो बहुत सदमा लगा कि कोई कहने की बात थी।
कह कर तो नसरुद्दीन को भी ग्लानि हुई।
यह कोई कहने की बात थी।
मगर अब जो हो गया सो हो गया।
शामदा था, बाहर निकला, आंखें झुकाए हुए था।
मित्र ने कहा, नसरुद्दीन, यह मैंने कभी नहीं
सोचा था कि तुम मेरी फजीहत करवाओगे।
चार लोगों के सामने यह कहने की क्या बात थी?
अरे, कपड़े तुम्हारे हैं सो हैं। कोई मैंने ले नहीं लिए।
और उन्होंने कुछ पूछा नहीं था कपड़ों के बाबत।
तुम यह क्यों बोले कि कपड़े?
कपड़े की बात ही क्यों उठायी?
नसरुद्दीन ने कहा,
अब जो भूल हो गई, हो गई। ऐसे ही नहीं हो गई भूल,
भीतर अंतर्धारा चल रही है, ईष्या की,
कि मेरे कपड़े और यह हरामजादा मुफकीरत
अकड़ दिखला रहा है!
क्या शान से चल रहा है!
जूते चरर मरर हो रहे हैं!
पगड़ी भी क्या तिरछी सिर पर रखी है!
और मैं इसके सामने बिल्कुल नौकर चाकर मालूम हो रहा हूं।
अपने हाथ से यह मूढ़ता कर ली!
भीतर तो वही चल रही थी बात।
दूसरे घर पहुंचे। वहां भी वही हुआ,
लोगों ने एकदम ध्यान दिया मित्र के लिए।
फिर चोट लगी उसे। पूछा,
आप कौन हैं?
कहां से आए? कोई राजकुमार मालूम होते हैं।
आग लग गई जब उसने कहा कि कोई राजकुमार मालूम होते हैं!
अरे, कहा, कोई राजकुमार नहीं,
मेरे मित्र हैं, जमाल इनका नाम है।
बीस साल बाद मिलने आए हैं।
रहे कपड़े, सो कपड़े इन्हीं के हैं।
निकल गया मुंह से आधा वचन कि रहे कपड़े,
तब उसे खयाल आया कि फिर वही भूल हुई जा रही है,
सो उसने कहा, कपड़े इन्हीं के हैं।
कौन कहता है कि मेरे हैं?
मगर फिर बात तो हो गयी।
फिर कपड़े की बात उठ गई।
बाहर आकर मित्र ने कहा,
अब मैं न जाऊंगा तुम्हारे साथ।
नसरुद्दीन ने कहा, एक मौका और दो,
तीसरी जगह और जाना है।
और एक मौका और इसलिए दो
ताकि यह भूल से मैं बच सकूं। यह क्या हो रहा है?
मेरी जबान को क्या हो गया?
ऐसा तो कभी नहीं होता था।
बात उठानी ही नहीं थी मुझे और फिर भी उठ गई।
हालांकि मैंने सुधारने की कोशिश की,
मगर तीर हाथ से निकल जाए तो लौटता नहीं।
सुधारते सुधारते भी बात बिगड़ गई।
मगर तीसरी जगह बिल्कुल खयाल रखूंगा,
सजग रहूंगा!
तीसरी जगह पहुंचे तो और मुश्किल हो गई।
घर का मालिक तो था नहीं, मालकिन थी।
बड़ी सुंदर स्त्री। उसकी नजरें एकदम टिकी रह गईं मित्र पर। नसरुद्दीन को तो उसने देखा ही नहीं।
मित्र को बिठाया, अपने हाथों से उसके जूते खोले,
नसरुद्दीन खड़ा है, उसकी कोई बात ही नहीं,
उसको बैठने को भी नहीं कहा।
बस इतना ही पूछा नसरुद्दीन से कि नसरुद्दीन,
आप कौन हैं, किस देश के सम्राट हैं?
नसरुद्दीन ने कहा, सम्राट इत्यादि कुछ भी नहीं,
मेरा मित्र है जमाल; अरे, लंगोटिया यार है,
बचपन के साथी हैं, बीस साल बाद आया है;
रहे कपड़े, सो कपड़े की बात नहीं करनी है,
बिल्कुल नहीं करनी है। बात ही नहीं करनी है।
वह बात ही मत छेड़ना!
जो बात दो दफा भूल हो चुकी है, अब भूल नहीं करूंगा।
किसी के हों,
तुम्हें क्या मतलब? क्यों कपड़ों के पीछे पड़े हो?
यह स्वाभाविक है।
ईष्या अहंकार को लगी चोट है।
और जिस दिन अहंकार चला जाता है,
उसी क्षण ईष्या चली जाती है।
ईष्या कितना जलाती है!
ऐसा समझो कि
अहंकार अगर अग्नि है तो ईष्या ईंधन है।
जैसे आग में कोई घी डालता जाए,
चाहे कि बुझाऊं और डाले घी,
तो लपटें और उठें, आग और भभके, ऐसे ईष्या है।
ईष्या ईंधन है।
जितनी ईष्या डालोगे उतना अहंकार भभकेगा।
जहां तुम्हारा अहंकार जीत जाएगा,
जहां तुम्हारे अहंकार को विजय मिलेगी,
वहां तो तुम खुश होओगे;
और जो तुम्हें विजय दिलवाएंगे,
उनसे तुम कहोगे,
मेरा बड़ा प्रेम है तुम से।
तुम्हारा प्रेम भी क्या है? बस,
वह सिर्फ अहंकार की विजय जो दिला दे,
जो उसमें साधन हो जाए, उससे तुम प्रेम जतलाते हो।
जो तुम्हारे अहंकार को बढ़ा दे, उससे तुम प्रेम जतलाते हो।
वह प्रेम झूठा है,
क्योंकि वह अहंकार की पूजा में संलग्न है।
असली प्रेम तो अहंकार के मिट जाने पर ही पैदा होता है।
प्रेम और परमात्मा एक साथ पैदा होते हैं।
प्रेम और परमात्मा एक दूसरे के ही नाम हैं।
प्रेम परमात्मा की छाया है।
या परमात्मा प्रेम का सघन रूप है।
असली प्रेम और परमात्मा में रत्ती भर भेद नहीं है।
इसलिए जीसस ने कहा है :
प्रेम परमात्मा है।
🌻🌷राम दुवारे जो मरे 🌷🌻
🌹🌷🌹ओशो🌹🌷🌹