13 अक्टू॰ 2016

छप्पर पर खोया ऊंट

खुरासान का बादशाह रात अपने महल में सोया हुआ था। अंधेरी रात थी, आधी रात हो रही थी। उसे छत पर किसी के चलने की आवाज सुनाई दी। उसने ध्यान से सुना, वाकई छप्पर पर कोई चल रहा है। पुराना महल था। दीवारें और छत मिटटी और पत्थर के बने थे। छप्पर हिलने लगा। बादशाह ने पूछा, कौन है ऊपर इस अँधेरी रात में? ऊपर से आवाज आई, मैं हूं एक नागरिक। राजा ने पूछा, नागरिक हो, तो ऊपर छप्पर पर क्या कर रहे हो?  क्या तुम चोर हो? उसने कहा कि नही, मैं चोर नही हूं। मेरा ऊंट खो गया है, मैं उसे खोज रहा हूं। राजा ने कहा, पागल हो गए हो क्या? ऊंट छप्पर के ऊपर कैसे चढ़ सकता है?
उस व्यक्ति ने कहा, मैं तो आपका ही अनुकरण कर रहा हूं। बादशाह हैरान हुआ। वह बिस्तर पर लेटे- लेटे ही बोला, तुम जो कह रहे हो, वह मेरी समझ मे नही आ रहा। छत पर घूम रहे व्यक्ति ने कहा अगर आप सिंहासन पर बैठकर सोचते हैं  कि सुख मिल जाएगा, अगर आप सोचते हैं कि धन मिलने से सुख मिल जायेगा, और अगर आप सही है, तो फिर मैं कौन-सी भूल कर रहा हूं? छप्पर पर खोया हुआ ऊंट भी मिल सकता हैं। राजा सोचने लगा, वह आदमी पागल नही मालूम होता। राजा भागकर बाहर आया और सिपाहियों से कहा, छत पर घूम रहे उस व्यक्ति को पकड़ो। सब दौड़े। लेकिन बहुत खोजने पर भी छप्पर पर वह आदमी नही मिला।
छप्पर पर ऊंट खोजने से नही मिलेगा। छप्पर पर ऊंट खोता भी नही है। लेकिन हम सब लोग ऊंट को वही खोज रहे हैं।

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