एक तोते का किस्सा, जिससे जीवन की अहम सिख सीख मिलती है।
राम एक दिन दफ्तर से लौटा, तो बहुत नाराज था। मां ने पूछा, 'आज डिनर में क्या खाओगे ?' जाने क्यों राम उन्ही पर बरस पड़ा-' आप एक दिन अपने मन से खाना नही बना सकती क्या? रोज मेरी परीक्षा क्यों लेती हैं।' मां समझ गई कि यह गुस्सा उसके दफ्तर का है। ऐसा पहले भी कई बार हो चूका था। मां ने पूछा, 'तुम्हे अपना दफ्तर अच्छा नही लगता, तो छोड़ दो। दूसरी नोकरी मिल जाएगी। बाहर निकलोगे नही, तो पता कैसे चलेगा कि बाहर है क्या?' राम ने कहा, 'अगर इतना ही आसान होता, तो दो साल पहले ही छोड़ चूका होता।' मां ने राम से पूछा, 'एक कहानी सुनोगे?' राम ने हां में सिर हिला दिया। मां बोली, 'एक बार एक आदमी पहाडों पर सैर करने गया। उसने देखा, चारो तरफ ऊंचे-ऊंचे पहाड़, खूब हरे-भरे पेड़ और एकदम ताजा हवा। वह उन हसीन वादियो का आनंद ले रहा था कि एक तेज आवाज पहाड़ो से टकराकर गूंजती हुई उसके कानो में पड़ी। ऐसा लगा, जैसे कोई चीख रहा हो - 'आजादी...... आजादी....। वह आदमी हैरान हो गया। वह ढूंढने लगा कि आखिर यह आवाज कहां से आ रही है। काफी ढूंढने के बाद उसे पिंजरे में बन्द एक तोता मिला, जो चिल्ला रहा था- 'आजादी...... आजादी....। उस तोते को आजाद करने से पहले ही वह आदमी इसी आनंद से भर गया कि वह उस तोते को आजाद करने जा रहा है। मुस्कुराते हुए उसने पिंजरे का दरवाजा खोल दिया। पर तोता तो डरकर अंदर की तरफ भाग गया। आदमी काफी देर तक उसे पुचकारता रहा। तोता पिंजरे में बैठा वही राग अलापता रहा-'आजादी... आजादी...।' काफी देर कोशिश करने के बाद आदमी ने हाथ अंदर डाला, तोते को पकड़ा और बाहर निकालकर एक पहाड़ से नीचे की तरफ छोड़ दिया, ताकि तोता उड़ जाए। ऐसा करके उसे बहुत सुकून मिला। वह उस रात पास के एक गांव में रुक गया। सुबह होने से पहले आदमी को फिर वही आवाज सुनाई दी-' आजादी... आजादी...।' वह दोबारा पिंजरे के पास जाने लगा, पर देखा कि पिंजरे का दरवाजा खुला है और तोता वापस पिंजरे के अंदर बैठकर चिल्ला रहा है - 'आजादी... आजादी...।' राम ने पूछा- मां, आप क्या कहना चाह रही हैं? मां बोली-'बेटा, हमारा मन भी इस तोते की तरह है, जिसे पिंजरे में रहने का अभ्यास हो चूका है। वह सरे कष्ट सह सकता है, पर पिंजरा छोड़कर जाने को तैयार नही हो पाता। पिंजरा छोड़ोगे, तभी तो पता चलेगा कि बाहर दुनिया कितनी खूबसूरत हैं। यह सिर्फ तुम ही कर सकते हो। कोई और नही।
परिस्थिति को अनुकुल बनाने की कोशिश स्वयं करनी चाहिए।
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