राम और श्याम दोनों सगे भाई थे पर उनके बीच हमेशा छत्तिस का आंकड़ा रहता था। दिवाली से पहले मां ने उन्हें कहा, घर की सफाई करना तुम दोनों की जिम्मेदारी है। जो ज्यादा अच्छे से सफाई करेगा, उसे एक खास उपहार मिलेगा। यह कहकर मां ने घर को दो भागों में बाट दिया। शुरू में दोनों ने एक घण्टे बहुत मेहनत की। उसके बाद श्याम को ख्याल आया, इनाम जितने के दो ही तरीके है या तो अपने हिस्से की सफाई करो या राम के हिस्से को ज्यादा गन्दा करो। उसने सोचा, सफाई करने में ज्यादा समय लगेगा, तो दूसरा रास्ता अपनाते है और श्याम के हिस्से को ज्यादा गन्दा कर देते हैं। यह सोचकर वह राम के हिस्से में ज्यादा गंदगी करने लगा। राम को यह देखकर बहुत गुस्सा आया और दोनों में लड़ाई होने लगी। मां यह सब देख रही थी।
मां ने दोनों को बुलाया और कहने लगी, तुम दोनों को एक कहानी सुनाती हूं। कुछ साल पहले एक ओलंपिक प्रतियोगिता में निशक्तजनों की दौड़ हो रही थीं। रेफरी ने बन्दुक चलाकर इशारा किया और सभी प्रतिभागी फिनिश लाइन की ओर भागे। उसमे से एक प्रतिभागी का पैर कही फस गया और वह वहीं गिर पड़ा। उसको काफी चोट आई और वह दर्द से कराहने लगा। सभी प्रतियोगी उसकी कराहने की आवाज सुन कर रुक गए और उसको कराहते हुए देखने लगे। उसमे से एक लड़की, जिसका एक पैर एक हादसे में कट गया था, वापस मुड़ी और उस प्रतियोगी के पास जाकर अपना हाथ बढ़ाकर बोली, चलो, हम साथ में दौड़ते है। उसे देखकर ओर प्रतियोगी भी वापस आये और हाथ पकड़कर सब ने एक साथ फिनिश लाइन पार की। इस्टेडियम में मौजूद सभी लोगों ने प्रतियोगियो को सलामी दी।
मां ने कहा, मैंने तुम दोनों को यह कहानी इसलिए सुनाई , ताकि तुम यह समझ पाओ कि जिंदगी में जीत ही सब कुछ नही होती। ऐसी कोई जीत नही, जो तम्हे हमेशा के लिए खुश कर सके। खुशी प्यार बाटने और एक दूसरे की मदद करने से ही मिलती हैं। कभी एक दूसरे को जिताकर देखों, तुम्हे समझ में आ जायेगा कि खुशी तम्हारे खुद के जितने से कितनी बड़ी है। राम और श्याम ने एक दूसरे से माफ़ी मांगी और घर की सफाई करने लगे।
वह जीत किस काम की, जिससे खुशी न मिले।
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