28 दिस॰ 2016

किसान की मेहनत और फूटा घड़ा



बहुत  समय  पहले  की  बात  है  , किसी  गाँव  में  एक   किसान  रहता  था . वह  रोज़   भोर  में  उठकर  दूर  झरनों  से  स्वच्छ  पानी  लेने  जाया   करता  था . इस  काम  के  लिए  वह  अपने  साथ  दो  बड़े  घड़े  ले  जाता  था , जिन्हें  वो  डंडे  में   बाँध  कर  अपने कंधे पर  दोनों  ओर  लटका  लेता  था .

उनमे  से  एक  घड़ा  कहीं  से  फूटा  हुआ  था  ,और  दूसरा  एक  दम  सही  था . इस  वजह  से  रोज़  घर  पहुँचते -पहुचते  किसान  के  पास  डेढ़  घड़ा   पानी  ही बच  पाता  था .ऐसा  दो  सालों  से  चल  रहा  था .

सही  घड़े  को  इस  बात  का  घमंड  था  कि  वो  पूरा  का  पूरा  पानी  घर  पहुंचता  है  और  उसके  अन्दर  कोई  कमी  नहीं  है  ,  वहीँ  दूसरी  तरफ  फूटा  घड़ा  इस  बात  से  शर्मिंदा  रहता  था  कि  वो  आधा  पानी  ही  घर  तक  पंहुचा   पाता  है  और  किसान  की  मेहनत  बेकार  चली  जाती  है .   फूटा घड़ा ये  सब  सोच  कर  बहुत  परेशान  रहने  लगा  और  एक  दिन  उससे  रहा  नहीं  गया , उसने  किसान   से  कहा , “ मैं  खुद  पर  शर्मिंदा  हूँ  और  आपसे  क्षमा  मांगना  चाहता  हूँ ?”

“क्यों  ? “ , किसान  ने  पूछा  , “ तुम  किस  बात  से  शर्मिंदा  हो ?”

“शायद  आप  नहीं  जानते  पर  मैं  एक  जगह  से  फूटा  हुआ  हूँ , और  पिछले  दो  सालों  से  मुझे  जितना  पानी  घर  पहुँचाना  चाहिए  था  बस  उसका  आधा  ही  पहुंचा  पाया  हूँ , मेरे  अन्दर  ये  बहुत बड़ी  कमी  है , और  इस  वजह  से  आपकी  मेहनत  बर्वाद  होती  रही  है .”, फूटे घड़े ने दुखी होते हुए कहा.

किसान  को  घड़े  की  बात  सुनकर  थोडा  दुःख  हुआ  और  वह  बोला , “ कोई  बात  नहीं , मैं  चाहता  हूँ  कि  आज  लौटते  वक़्त  तुम   रास्ते में  पड़ने  वाले  सुन्दर  फूलों  को  देखो .”

घड़े  ने  वैसा  ही  किया , वह  रास्ते  भर  सुन्दर  फूलों  को  देखता  आया , ऐसा करने से  उसकी  उदासी  कुछ  दूर  हुई  पर  घर  पहुँचते – पहुँचते   फिर  उसके  अन्दर  से  आधा  पानी  गिर  चुका  था, वो  मायूस  हो  गया  और   किसान  से  क्षमा  मांगने  लगा .


किसान  बोला ,” शायद  तुमने  ध्यान  नहीं  दिया  पूरे  रास्ते  में  जितने   भी  फूल  थे  वो  बस  तुम्हारी  तरफ  ही  थे , सही  घड़े  की  तरफ  एक  भी  फूल  नहीं  था . ऐसा  इसलिए  क्योंकि  मैं  हमेशा  से  तुम्हारे  अन्दर  की  कमी को   जानता  था , और  मैंने  उसका  लाभ  उठाया . मैंने  तुम्हारे  तरफ  वाले  रास्ते  पर   रंग -बिरंगे  फूलों के  बीज  बो  दिए  थे  , तुम  रोज़  थोडा-थोडा  कर  के  उन्हें  सींचते  रहे  और  पूरे  रास्ते  को  इतना  खूबसूरत  बना  दिया . आज तुम्हारी  वजह  से  ही  मैं  इन  फूलों  को  भगवान  को  अर्पित  कर  पाता  हूँ  और   अपना  घर  सुन्दर  बना  पाता  हूँ . तुम्ही  सोचो  अगर  तुम  जैसे  हो  वैसे  नहीं  होते  तो  भला  क्या  मैं  ये  सब  कुछ  कर  पाता ?” इसलिये मित्रो हमेशा निजी स्वार्थ का त्यागकर करके कुछ परमार्थ यानी दुसरो के हित में किये गए कार्यो से भी अपार सुख मिलता है। 

20 दिस॰ 2016


अलसी का सेवन

अलसी में कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन, केरोटिन, थायमिन, राइबोफ्लेविन और नियासिन पाए जाते हैं। यह गनोरिया, नेफ्राइटिस, अस्थमा, सिस्टाइटिस, कैंसर, हृदय रोग, मधुमेह, कब्ज, बवासीर, एक्जिमा के उपचार में उपयोगी है।

  • भूरे-काले रंग के यह छोटे छोटे बीज, हृदय रोगों से आपकी रक्षा करते हैं। इसमें उपस्थित घुलनशील फाइबर्स, प्राकृतिक रूप से आपके शरीर में कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने का काम करता है। इससे हृदय की धमनियों में जमा कोलेस्ट्रॉल घटने लगता है, और रक्त प्रवाह बेहतर होता है, नतीजतन हार्ट अटैक की संभावना नहीं के बराबर होती है ।
  • अलसी में ओमेगा-3 भरपूर मात्रा में पाया जाता है, जो रक्त का थक्का बनने या उसे जमने से रोेकता है। क्याेंकि रक्त का थक्का बनने से रक्त के प्रवाह में बाधा आती है और अटैक की संभवना बनती है।अलसी इस संभावन काे समाप्त करती है।
  • यह शरीर के अतिरिक्त वसा को भी कम करती है, जिसे आपका वजन कम होने में सहायता मिलती है। यह रक्त में मौजूद कोलेस्ट्रॉल को कम करने में भी सहायक है। 
  • अलसी में मौजूद एंटी-ऑक्सीडेंट्स और फाइटोकैमिकल्स, बढ़ती उम्र के लक्षणों को कम करती है, जिससे त्वचा पर झुर्रियां नहीं होती और कसाव बना रहता है। इससे त्वचा स्वस्थ व चमकदार बनती है। 
  • अलसी में अल्फा लाइनोइक एसिड पाया जाता है, जो ऑथ्राईटिस, अस्थमा, डाइबिटीज और कैंसर से लड़ने में मदद करता है। खास तौर से कोलोन कैंसर से लड़ने में यह सहायक होता है। 
  • सीमित मात्रा में अलसी का सेवन, खून में शर्करा के स्तर को नियंत्रित करता है। इससे शरीर के आंतरिक भाग स्वस्थ रहते हैं, और बेहतर कार्य करते हैं। 
  • इसमें उपस्थित लाइगन नामक तत्व, आंतों में सक्रिय होकर, ऐसे तत्व का निर्माण करता है, जो फीमेल हार्मोन्स के संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 
  • अलसी के तेल की मालिश से शरीर के अंग स्वस्थ होते हैं, और बेहतर तरीके से कार्य करते हैं। इस तेल की मसाज से चेहरे की त्वचा कांतिमय हो जाती है। 
  • शाकाहारी लोगों के लिए अलसी, ओमेगा-3 का बेहतर विकल्प है, क्योंकि अब तक मछली को ओमेगा-3 का अच्छा स्त्रोत माना जाता था, जिसका सेवन नॉन-वेजिटेरियन लोग ही कर पाते हैं। 
  • प्रतिदिन सुबह शाम एक चम्मच अलसी का सेवन आपको पूरी तरह से स्वस्थ रखने में सहायक होता है, इसे पीसकर पानी के साथ भी लिया जा सकता है ।

17 दिस॰ 2016

श्री कृष्ण और अर्जुन का भ्रमण - ईश्वर का कार्य, प्रभु की लीला

श्री कृष्ण और अर्जुन का भ्रमण - ईश्वर का कार्य, प्रभु की लीला 


एक बार श्री कृष्ण और अर्जुन भ्रमण पर निकले तो उन्होंने मार्ग में एक निर्धन ब्राहमण को भिक्षा मागते देखा अर्जुन को उस पर दया आ गयी और उन्होंने उस ब्राहमण को स्वर्ण मुद्राओ से भरी एक पोटली दे दी। जिसे पाकर ब्राहमण ख़ुशी ख़ुशी घर लौट चला। पर राह में एक लुटेरे ने उससे वो पोटली छीन ली।


ब्राहमण दुखी होकर फिर से भिक्षावृत्ति में लग गया। अगले दिन फिर अर्जुन की दृष्टि जब उस ब्राहमण पर पड़ी तो उन्होंने उससे इसका कारण पूछा।

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 ब्राहमण की व्यथा सुनकर उन्हें फिर से उस पर दया आ गयी और इस बार उन्होंने ब्राहमण को एक माणिक दिया। ब्राहमण उसे लेकर घर पंहुचा और चोरी होने के डर से उसे एक घड़े में छिपा दिया। दिन भर का थका मांदा होने के कारण उसे नींद आ गयी, इस बीच ब्राहमण की स्त्री उस घड़े को लेकर नदी में जल लेने चली गयी और जैसे ही उसने घड़े को नदी में डुबोया वह माणिक भी जल की धरा के साथ बह गया। ब्राहमण को जब यह बात पता चली तो अपने भाग्य को कोसता हुआ वह फिर भिक्षावृत्ति में लग गया। अर्जुन और श्री कृष्ण ने जब फिर उसे इस दरिद्र अवस्था में उसे देखा तो जाकर सारा हाल मालूम किया। सारा हाल मालूम होने पर अर्जुन भी निराश हुए और मन की मन सोचने लगे इस अभागे ब्राहमण के जीवन में कभी सुख नहीं आ सकता।    

                                   अब यहाँ से प्रभु की लीला प्रारंभ हुई। उन्होंने उस ब्राहमण को दो पैसे दान में दिए। तब अर्जुन ने उनसे पुछा “प्रभु मेरी दी मुद्राए और माणिक भी इस अभागे की दरिद्रता नहीं मिटा सके तो इन दो पैसो से इसका क्या होगा” ? यह सुनकर प्रभु बस मुस्कुरा भर दिए और अर्जुन से उस ब्राहमण के पीछे जाने को कहा। रास्ते में ब्राहमण सोचता हुआ जा रहा था कि"दो पैसो से तो एक व्यक्ति के लिए भी भोजन नहीं आएगा प्रभु ने उसे इतना तुच्छ दान क्यों दिया"? तभी उसे एक मछुवारा दिखा जिसके जाल में एक मछली तड़प रही थी। ब्राहमण को उस मछली पर दया आ गयी उसने सोचा"इन दो पैसो से पेट कि आग तो बुझेगी नहीं क्यों न इस मछली के प्राण ही बचा लिए जाये"यह सोचकर उसने दो पैसो में उस मछली का सौदा कर लिया और मछली को अपने कमंडल में डाल दिया।                 

 कमंडल के अन्दर जब मछली छटपटई तो उसके मुह से माणिक निकल पड़ा। ब्राहमण ख़ुशी के मारे चिल्लाने “लगा मिल गया मिल गया ”..!!! तभी भाग्यवश वह लुटेरा भी वहा से गुजर रहा था जिसने ब्राहमण की मुद्राये लूटी थी। उसने सोचा कि ब्राहमण उसे पहचान गया और अब जाकर राजदरबार में उसकी शिकायत करेगा इससे डरकर वह ब्राहमण से रोते हुए क्षमा मांगने लगा और उससे लूटी हुई सारी मुद्राये भी उसे वापस कर दी। यह देख अर्जुन प्रभु के आगे नतमस्तक हुए बिना नहीं रह सके। जब आप दूसरे का भला कर रहे होते हैं, तब आप ईश्वर का कार्य कर रहे होते हैं।

16 दिस॰ 2016

Baba Bulleh Shah Ji बाबा बुलेह शाह जी

बाबा बुलेह शाह जी कहते है - 
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फकीर बुलेशाह से जब किसी ने पूछा, कि आप इतनी गरीबी में भी भगवान का शुक्रिया कैसे करते हैं
तो बुलेशाह ने कहा
चढ़दे सूरज ढलदे देखे...
बुझदे दीवे बलदे देखे.,
हीरे दा कोइ मुल ना जाणे..
खोटे सिक्के चलदे देखे.
जिना दा न जग ते कोई, ओ वी पुत्तर पलदे देखे।
उसदी रहमत दे नाल बंदे पाणी उत्ते चलदे देखे।
लोकी कैंदे दाल नइ गलदी, मैं ते पत्थर गलदे देखे।
जिन्हा ने कदर ना कीती रब दी, हथ खाली ओ मलदे देखे ..
..कई पैरां तो नंगे फिरदे, सिर ते लभदे छावा,
मैनु दाता सब कुछ दित्ता, क्यों ना शुकर मनावा ..
धन धन सतगुरू तेरा ही आसरा

                                                   बाबा बुलेह शाह जी
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चाणक्य नीति Chanakya Neeti In Hindi

                  चाणक्य नीति



     Ø सतुंलित दिमाग जैसी कोई सादगी नही,संतोष जैसा कोई सुख नही,लोभ जैसी कोई                 बीमारी नही और दया जैसा कोई पुण्य नही है.

Ø आपसे दूर रह कर भी दूर नही है और वही जो आपके मन मे नही है वह आपके नजदीक रहकर भी दूर है.
Ø एक अनपढ़ व्यक्ति का जीवन उसी तरह होता है जैसे की किसी कुत्ते की पूछ जो ही उसके पीछे का भाग ढकती है और ही उसे कीड़ो से बचाती है.     
Ø कोई जंगल सारा जैसे एक सुगंध भरे वृक्ष से महक जाता है उसी तरह एक गुणवान पुत्र से सारे कुल का नाम बढता है.
Ø खुद का अपमान करा के जीने से तो अच्छा है मर जाना क्योकि प्राणों को त्यागने से एक ही बार कष्ट होता है पर अपमानित होकर जिंदा रहने से बार-बार कष्ट होता है.

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Ø कोई भी शिक्षक कभी साधारण नही होता प्रलय और निर्माण उसकी गोद मे पलते है.
Ø सभी प्रकार के डरो में सबसे बड़ा डर बदनामी का होता है.
Ø बुद्धिमान व्यक्ति का कोई दुश्मन नहीं होता.
Ø दुश्मन द्वारा अगर मधुर व्यवहार किया जाये तो उसे दोष मुक्त नही समझना चाहिए.

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Ø जो व्यक्ति शक्ति होने पर मन में हार नहीं मानता उसे संसार की कोई भी ताकत परास्त नहीं कर सकती.
Ø किसी भी अवस्था में सबसे पहले माँ को भोजन कराना चाहियें.
Ø बहुत से गुणो के होने के बाद भी सिर्फ एक दोष सब कुछ नष्ट कर सकता है.
Ø अगर कुबेर भी अपनी आय से ज्यादा खर्च करने लगे तो वह भी कंगाल हो जायेगा.
Ø दण्ड का डर नहीं होने से लोग गलत कार्य करने लग जाते है.
Ø कभी भी अपनी कमजोरी को खुद उजागर करो.
Ø कोई भी व्यक्ति ऊँचे स्थान पर बैठकर ऊँचा नहीं हो जाता बल्कि हमेशा अपने गुणों से ऊँचा होता है.
Ø जो तुम्हारी बात को सुनते हुए इधर-उधर देखे उस आदमी पर कभी भी विश्वास करे.

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Ø बुद्धि से पैसा कमाया जा सकता है,पैसे से बुद्धि नहीं.
Ø दूसरो की गलतियो से सीखो अपने ही ऊपर प्रयोग करके सीखने पर तुम्हारी आयु कम पड़ जायेंगी.
Ø डर को नजदीक आने दो अगर यह नजदीक जाय तो इस पर हमला कर दो.
Ø मुर्ख लोगो से वाद-विवाद नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से हम अपना ही समय नष्ट करते है.

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Ø आलसी मनुष्य का वर्तमान और भविष्य नही होता.
Ø भाग्य उनका साथ देता है जो कठिन परिस्थितयो का सामना करके भी अपने लक्ष्य के प्रति ढृढ रहते है.
Ø मनुष्य स्वयं ही अपने कर्मो के दवारा जीवन मे दुःख को बुलाता है.   
Ø  भगवान मूर्तियो मे नही बसता बल्कि आपकी अनुभूति ही आपका ईश्वर है और आत्मा आपका मंदिर.