28 अक्टू॰ 2016

धनतेरस का त्योहार

आश्विन महीने के 13 वें दिन समुद्र मंथन के दौरान ब्रह्माण्ड के प्रथम चिकिसक भगवान् धन्वन्तरी हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे
शास्त्रों के अनुसार धनतेरस के दिन ही भगवान धनवंतरी हाथों में स्वर्ण कलश लेकर सागर मंथन से उत्पन्न हुए। धनवंतरी ने कलश में भरे हुए अमृत से देवताओं को अमर बना दिया। धनवंतरी के उत्पन्न होने के दो दिनों बाद देवी लक्ष्मी प्रकट हुई। इसलिए दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है।
शास्त्रों के अनुसार भगवान धनवंतरी देवताओं के वैद्य हैं। इनकी भक्ति और पूजा से आरोग्य सुख यानी स्वास्थ्य लाभ मिलता है। मान्यता है कि भगवान धनवंतरी विष्णु के अंशावतार हैं। संसार में चिकित्सा विज्ञान के विस्तार और प्रसार के लिए ही भगवान विष्णु ने धनवंतरी का अवतार लिया था।
धनतेरस से जुड़ी एक दूसरी कथा है कि कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन देवताओं के कार्य में बाधा डालने के कारण भगवान विष्णु ने असुरों के गुरू शुक्राचार्य की एक आंख फोड़ दी थी। कथा के अनुसार, देवताओं को राजा बलि के भय से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और राजा बलि के यज्ञ स्थल पर पहुंच गये। शुक्राचार्य ने वामन रूप में भी भगवान विष्णु को पहचान लिया और राजा बलि से आग्रह किया कि वामन कुछ भी मांगे उन्हें इंकार कर देना। वामन साक्षात भगवान विष्णु हैं। वो देवताओं की सहायता के लिए तुमसे सब कुछ छीनने आये हैं। बलि ने शुक्राचार्य की बात नहीं मानी। वामन भगवान द्वारा मांगी गयी तीन पग भूमि, दान करने के लिए कमण्डल से जल लेकर संकल्प लेने लगे। बलि को दान करने से रोकने के लिए शुक्राचार्य राजा बलि के कमण्डल में लघु रूप धारण करके प्रवेश कर गये। इससे कमण्डल से जल निकलने का मार्ग बंद हो गया। वामन भगवान शुक्रचार्य की चाल को समझ गये। भगवान वामन ने अपने हाथ में रखे हुए कुशा को कमण्डल में ऐसे रखा कि शुक्राचार्य की एक आंख फूट गयी। शुक्राचार्य छटपटाकर कमण्डल से निकल आये। बलि ने संकल्प लेकर तीन पग भूमि दान कर दिया। इसके बाद भगवान वामन ने अपने एक पैर से संपूर्ण पृथ्वी को नाप लिया और दूसरे पग से अंतरिक्ष को। तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं होने पर बलि ने अपना सिर वामन भगवान के चरणों में रख दिया। बलि दान में अपना सब कुछ गंवा बैठा। इस तरह बलि के भय से देवताओं को मुक्ति मिली और बलि ने जो धन-संपत्ति देवताओं से छीन ली थी उससे कई गुणा धन-संपत्ति देवताओं को मिल गयी। इस उपलक्ष्य में भी धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है।

धनतेरस की हार्दिक बधाई ।।



27 अक्टू॰ 2016

Very Beautiful Lines by Gulzar Sahab


बचपन बाली दिवाली .....
हफ्तों पहले से साफ़-सफाई में जुट जाते हैं। 
चूने के कनिस्तर में थोड़ी नील मिलाते हैं
अलमारी खिसका खोयी चीज़ वापस  पाते हैं
दोछत्ती का कबाड़ बेच कुछ पैसे कमाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं  ....
दौड़-भाग के घर का हर सामान लाते हैं
चवन्नी -अठन्नी  पटाखों के लिए बचाते हैं
सजी बाज़ार की रौनक देखने जाते हैं
सिर्फ दाम पूछने के लिए चीजों को उठाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....
बिजली की झालर छत से लटकाते हैं
कुछ में मास्टर  बल्ब भी  लगाते हैं
टेस्टर लिए पूरे इलेक्ट्रीशियन बन जाते हैं
दो-चार बिजली के झटके भी  खाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....
दूर थोक की दुकान से पटाखे लाते है
मुर्गा ब्रांड हर पैकेट में खोजते जाते है
दो दिन तक उन्हें छत की धूप में सुखाते हैं
बार-बार बस गिनते जाते है
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....
धनतेरस के दिन कटोरदान लाते है
छत के जंगले से कंडील लटकाते हैं
मिठाई के ऊपर लगे काजू-बादाम खाते हैं
प्रसाद की  थाली   पड़ोस में  देने जाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....
माँ से खील में से  धान बिनवाते हैं
खांड  के खिलोने के साथ उसे जमके खाते है
अन्नकूट के लिए सब्जियों का ढेर लगाते है
भैया-दूज के दिन दीदी से आशीर्वाद पाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....
दिवाली बीत जाने पे दुखी हो जाते हैं 
कुछ न फूटे पटाखों का बारूद जलाते हैं
घर की छत पे दगे हुए राकेट पाते हैं
बुझे दीयों को मुंडेर से हटाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....
बूढ़े माँ-बाप का एकाकीपन मिटाते हैं
वहीँ पुरानी रौनक फिर से लाते हैं
सामान  से नहीं ,समय देकर सम्मान  जताते हैं
उनके पुराने सुने किस्से फिर से सुनते जाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....
Happy Dipawli

24 अक्टू॰ 2016

भोले बच्चो की खुशियां .............

राम दफ्तर से घर लौटा ही था कि पत्नी ने कहा, घर का राशन खत्म हो गया है। दफ्तर के काम-काज की थकान के बाद राम का बाजार जाने का बिलकुल भी मन नही था, पर जाना जरुरी था। राम ने गाड़ी निकाली और मार्केट की तरफ बढ़ा। थोड़ा आगे बढ़ते ही जाम दिखने लगा। त्योहारों के दिन थे और अगले ही दिन दिवाली का दिन (जो की एक बहुत बड़ा त्यौहार है) था।  ऐसा लग रहा था कि पूरा गांव- शहर मार्किट पर टूट पड़ा हो। राम ने किसी तरह गाड़ी पार्किंग में लगायी और एक मॉल में सुपरमार्केट में भीड़ से बचते-बचाते किसी तरह अपना सामान ट्रॉली में रखा और बिल की लाइन में खड़ा हो गया।  बिल की लाइन बहुत लम्बी थी।  लाइन में ठीक आगे दो बच्चे थे। लगभग नौ साल का एक लड़का और शायद छह साल की एक लड़की थी।  लड़के ने अपने से बड़े साइज के पुराने से कपड़े पहने थे।  पैंट की जेब फ़टी हुई थी और पैरों में घिसी चप्पलें थीं।  लड़की  के बाल चिड़िया के  घोंसले की तरह बिखरे थे और लड़के की तरह उसके कपड़े भी उम्र के हिसाब से बड़े थे लड़की के हाथ में सुनहरे रंग की चप्पल थी, जिसे उसने कसकर अपने सीने से लगा रखा था। उसके चेहरे पर बेशुमार ख़ुशी झलक रही थी और वह उछल रही थी। लड़का उतना ही शांत था था। देखते ही देखते उनके बिल का नंम्बर आ गया। लड़की ने चप्पल काउंटर पर बैठी महिला को दे दी। महिला ने उसे स्कैन किया और बोली, और कुछ? लड़के ने पूछा, कितना हुआ? महिला बोली, नौ सौ बीस रुपये। लड़के का चेहरा का चेहरा उतर गया। उसने अपनी बहन से बड़ी बहादुरी से कहा, अनू, चल घर चलें। हम इसकी जगह बाद में कुछ और ले लेंगें।  हमारे पास सिर्फ पांच सौ रुपये हैं। अनु बोली, लेकिन भैया, भगवान को यह चप्पल बहुत पसंद आएगी। भाई बोला, चल पगली। भगवान सिर्फ मन देखते हैं, चप्पल नही। राम पीछे खड़ा सब सुन रहा था। वह दिवाली ज्यादा धूमधाम से कभी नही बनाता था। आज तक दिवाली पर उसने किसी को कोई तोहफा नही दिया। पर उन बच्चो को देखकर उसे बहुत अच्छा लगा। उसने पांच सौ रुपये का नोट निकाला और और धीरे से काउंटर पर रख दिया। यह देखकर लड़की खिलखिला उठी और राम से बोली, थैंक यू अंकल। राम ने लड़के से पूछा, अनु कह रही थी कि यह चप्पल भगवान को बहुत पसंद आएगी? ऐसा क्या है इस चप्पल में ? लड़का बोला, हमारी मां अस्पताल में हैं। उन्हें कैंसर है और अब वह भगवान जी के पास जाने वाली हैं। पापा कहते है, "स्वर्ग में सारी जमीन सोने की होती है। मां की चप्पल टूट गई है। इसीलिए अनु चाहती थी कि मां भगवान से मिलने सुनहरी चप्पल पहनकर जाए।

           जीवन के मायने समझने हो, 
                    तो आंसुओ को ख़ुशी में बदलो।  

23 अक्टू॰ 2016

जीवन में खुशी का अर्थ


✍🏻“जीवन में खुशी का अर्थ लड़ाइयाँ लड़ना नहीं, बल्कि उन से बचना है ।
        कुशलता पूर्वक पीछे हटना भी अपने आप में एक जीत है ।  क्योकि
"अभिमान" की ताकत फरिश्तो को भी "शैतान" बना देती है, और
"नम्रता" साधारण व्यक्ति को भी  "फ़रिश्ता" बना देतीहै ।

हृदयाघात तथा गर्म पानी पीना


हृदयाघात तथा गर्म पानी पीना

यह भोजन के बाद गर्म पानी पीने के बारे में ही नहीं हृदयाघात के बारे में भी एक अच्छा लेख है। चीनी और जापानी अपने भोजन के बाद गर्म चाय पीते हैं, ठंडा पानी नहीं। अब हमें भी उनकी यह आदत अपना लेनी चाहिए। जो लोग भोजन के बाद ठंडा पानी पीना पसन्द करते हैं यह लेख उनके लिए ही है।

भोजन के साथ कोई ठंडा पेय या पानी पीना बहुत हानिकारक है क्योंकि ठंडा पानी आपके भोजन के तैलीय पदार्थों को जो आपने अभी अभी खाये हैं ठोस रूप में बदल देता है। इससे पाचन बहुत धीमा हो जाता है। जब यह अम्ल के साथ क्रिया करता है तो यह टूट जाता है और जल्दी ही यह ठोस भोजन से भी अधिक तेज़ी से आँतों द्वारा सोख लिया जाता है। यह आँतों में एकत्र हो जाता है। फिर जल्दी ही यह चरबी में बदल जाता है और कैंसर के पैदा होने का कारण बनता है।

इसलिए सबसे अच्छा यह है कि भोजन के बाद गर्म सूप या गुनगुना पानी पिया जाये। एक गिलास गुनगुना पानी सोने से ठीक पहले पीना चाहिए। इससे खून के थक्के नहीं बनेंगे और आप हृदयाघात से बचे रहेंगे।

विचार....


"कागजों को एक साथ जोडे रखने वाली पिन ही कागजों को चुभती है,
उसी प्रकार परिवार को भी वही व्यक्ति चुभता है, जो परिवार को जोड के रखता हो।''

दिन भर की थकान और जरुरी ज्ञान

एक राजा था। वह अपने राज्य के लोगो को खुश रखने की भरसक कोशिश करता , लेकिन हर बार उसे निराशा ही हाथ लगती थी। आखिरकार एक दिन राजा को पता चल गया कि लोग उसके राज्य में खुश नही हैं। राजा को यह सुनकर बहुत दुख हुआ। वह सोच में पड़ गया कि उसकी तमाम कोशिशों के बावजूद ऐसा क्या है कि लोग उसके राज्य में खुश नही हैं! तमाम प्रयासों के बावजूद वह अपने राज्य के लोगों को खुश नही कर पा रहा था। इसीलिए उसने तय किया कि वह पूरे राज्य का पैदल भ्रमण करेगा और राज्य के लोगो की परेशानियों को उनके पास जाकर समझने की कोशिश करेगा।
राजा के भ्रमण की तैयारियां पुरे राज्य में शुरू हो गई। पहला दिन था और राजा सुबह पांच बजे ही महल से निकल पड़ा। राजा को चलने की आदत तो थी नही, ऊपर से सड़के भी सिर्फ उसी इलाके में बनी थीं। जिस पर राजा रोज आता जाता था। इसीलिये राजा को पहली बार पथरीले, टूटे-फूटे रास्तो पर चलना पड रहा था। दिन भर तो राजा ने बहुत हिम्मत दिखाई, लेकिन शाम  तक राजा की हिम्मत ने जवाब दे दिया। उसके पैर बुरी तरह दर्द करने लगे। जब राजा के लिये और आगे चलना मुश्किल हो गया, तो एक जगह डेरा डालने का फैसला किया।
राजा ने वही एक गांव में दरबार लगाया। सभी दरबारी बैठे थे। राज्य की बदतर सड़को की स्थति की बात होने लगी। राजा ने आदेश दिया की पुरे राज्य में चमड़े की सड़कें बनवा दी जाए। राजा को लगा, यह सुनकर राज्य के लोग बहुत खुश हो जायेंगे। लेकिन इससे भी कोई फायदा नही हुआ। इस फैसले से गांव के हर निवासी के चेहरे पर मायूसी छा गई। राजा ने एक ग्रामीण व्यक्ति से इस बारे में पूछा- क्यों भई, तुम अब खुश तो हो न?  वह व्यक्ति शांत खड़ा रहा। राजा को यह देख कर बहुत गुस्सा आया। राजा ने सोचा, 'इन लोगो का दिमाग खराब हो गया हैं।। मैं इनकी भलाई के लिए इतना कर रहा हूं। फिर भी इनको कोई फर्क नहीं पड़ता।'
तभी उस ग्रामीण व्यक्ति ने कहा, 'हुकुम, आपने यह तो सोचा की पुरे राज्य में चमड़े की सड़के बनवा दी जाएं। लेकिन यह विचार नही किया कि चमड़े की सड़क बनवाने के लिये कितने जानवरो को मारना पड़ेगा। राज्य का कितना पैसा व्यर्थ हो जायेगा। पुरे राज्य में सड़के बनवाने के बजाय अगर आप खुद ही चमड़े के जूते बनवा के पहन लें, तो जानवरो को भी नही मारना पड़ेगा और जो पैसा बचेगा, वह राज्य के हित में खर्च किया जा सकेगा। राजा हैरान रह गया। उसकी समझ में आ गया कि वह कहां गलती कर रहा था।

          लोगों की भलाई के लिए उनका दृष्टिकोण
          समझना जरूरी है।

दिन भर की थकान और जरुरी ज्ञान

एक राजा था। वह अपने राज्य के लोगो को खुश रखने की भरसक कोशिश करता , लेकिन हर बार उसे निराशा ही हाथ लगती थी। आखिरकार एक दिन राजा को पता चल गया कि लोग उसके राज्य में खुश नही हैं। राजा को यह सुनकर बहुत दुख हुआ। वह सोच में पड़ गया कि उसकी तमाम कोशिशों के बावजूद ऐसा क्या है कि लोग उसके राज्य में खुश नही हैं! तमाम प्रयासों के बावजूद वह अपने राज्य के लोगों को खुश नही कर पा रहा था। इसीलिए उसने तय किया कि वह पूरे राज्य का पैदल भ्रमण करेगा और राज्य के लोगो की परेशानियों को उनके पास जाकर समझने की कोशिश करेगा।
राजा के भ्रमण की तैयारियां पुरे राज्य में शुरू हो गई। पहला दिन था और राजा सुबह पांच बजे ही महल से निकल पड़ा। राजा को चलने की आदत तो थी नही, ऊपर से सड़के भी सिर्फ उसी इलाके में बनी थीं। जिस पर राजा रोज आता जाता था। इसीलिये राजा को पहली बार पथरीले, टूटे-फूटे रास्तो पर चलना पड रहा था। दिन भर तो राजा ने बहुत हिम्मत दिखाई, लेकिन शाम  तक राजा की हिम्मत ने जवाब दे दिया। उसके पैर बुरी तरह दर्द करने लगे। जब राजा के लिये और आगे चलना मुश्किल हो गया, तो एक जगह डेरा डालने का फैसला किया।
राजा ने वही एक गांव में दरबार लगाया। सभी दरबारी बैठे थे। राज्य की बदतर सड़को की स्थति की बात होने लगी। राजा ने आदेश दिया की पुरे राज्य में चमड़े की सड़कें बनवा दी जाए। राजा को लगा, यह सुनकर राज्य के लोग बहुत खुश हो जायेंगे। लेकिन इससे भी कोई फायदा नही हुआ। इस फैसले से गांव के हर निवासी के चेहरे पर मायूसी छा गई। राजा ने एक ग्रामीण व्यक्ति से इस बारे में पूछा- क्यों भई, तुम अब खुश तो हो न?  वह व्यक्ति शांत खड़ा रहा। राजा को यह देख कर बहुत गुस्सा आया। राजा ने सोचा, 'इन लोगो का दिमाग खराब हो गया हैं।। मैं इनकी भलाई के लिए इतना कर रहा हूं। फिर भी इनको कोई फर्क नहीं पड़ता।'
तभी उस ग्रामीण व्यक्ति ने कहा, 'हुकुम, आपने यह तो सोचा की पुरे राज्य में चमड़े की सड़के बनवा दी जाएं। लेकिन यह विचार नही किया कि चमड़े की सड़क बनवाने के लिये कितने जानवरो को मारना पड़ेगा। राज्य का कितना पैसा व्यर्थ हो जायेगा। पुरे राज्य में सड़के बनवाने के बजाय अगर आप खुद ही चमड़े के जूते बनवा के पहन लें, तो जानवरो को भी नही मारना पड़ेगा और जो पैसा बचेगा, वह राज्य के हित में खर्च किया जा सकेगा। राजा हैरान रह गया। उसकी समझ में आ गया कि वह कहां गलती कर रहा था।

          लोगों की भलाई के लिए उनका दृष्टिकोण
          समझना जरूरी है।

19 अक्टू॰ 2016

अपनी चोंच से छुटकारा चाहने वाले तोते की कहानी।

एक तोता था। जो एक दिन अचानक खुद पर ही नाराज हो गया। उसकी मां ने पूछा, तो उसने जवाब दिया , मुझे अपनी यह चोंच पसंद नहीं। इस वजह से मैं बुदु दिखता हूं। मां ने पूछा, तुम्हे अपनी चोंच पसंद क्यों नहीं है? लाल रंग की चोंच तो बहुत सुंदर है। तोता बोला, सारस, हंस, गोरैया, बत्तख इन सबके आगे मेरी चोंच कितनी बेढंगी लगती है! तोते की मां ने एक छण सोचा, फिर कहा, बेटा ऐसी कौन सी वजह है, जिस कारण तुम अपनी चोंच से छुटकारा पाना चाहते हो? मुझे तो तुम्हारी चोंच एकदम ठीक दिखती है। तोता बोला, खाक ठीक दिखती है। हंस, बतख, बाज- सबकी चोंच कितनी खूबसूरत है। वे सब मुझ पर हँसते हैं। बस, बहुत हुआ, अब मुझे अपनी चोंच से छुटकारा पाना है। मां बोली, ओह! अब मैं समझी। चलो देखते हैं कि तुम पर कौन-सी चोंच अच्छी लगती है। क्या तुम चूहे या खरगोश या दूसरे छोटे जानवर खाना पसंद करते हो? तोता बोला, आप कैसी बात कर रही है? मैं यह सब कैसे खा सकता हूँ।
मां बोली, तो फिर तुम्हे मछलियां पसंद होंगी। या फिर पानी में तैरने वाले छोटे कीड़े?
तोता बोला, भला मैं यह सब क्यों खाऊंगा। यह सब तो मैं सपने में भी खाने की नही सोच सकता। मां बोली, तुम्हे मिर्च, बादाम, टमाटर अथवा दूसरे कोई फल या सब्जी तो एकदम पसंद नही होगी न? तोता बोला, आप तो जानती हैं कि हम तोतो को यही पसंद है। और मूंगफली तो मुझे सबसे स्वादिस्ट लगती है।
मां बोली, बेटा, हम सभी के कुछ खास गुण, कुछ खास हुनर, खानपान और रहन -सहन होते हैं। जैसे की बाज की चोंच मजबूत होती है, जिससे वह छोटे जानवरो का शिकार करता है। बतख के पंजे तैरने वाले होते है। हंस की लंबी टंगे और लंबी चोंच डुबोकर मछलियों व पानी के कीड़े- मकोड़ों को पकड़ सके। और हम तोतो की चोंच ऐसी है, ताकि हम मूंगफली, बादाम आदि इससे तोड़ सकें। सच तो यह है कि टीम बहुत खूबसूरत हो, और बहुत खास भी। दूसरों से बराबरी करने में तुम सिर्फ अपना समय व्यर्थ करोगे। तोता सन्तुष्ट होकर चला गया।

          जरुरी है कि हम खुद को पहचाने औ उसके नुरूप काम करें।

15 अक्टू॰ 2016

एक तोते का किस्सा, जिससे जीवन की अहम सीख मिलती है।

एक तोते का किस्सा, जिससे जीवन की अहम सिख  सीख मिलती है। 

राम एक दिन दफ्तर से लौटा, तो बहुत नाराज था। मां ने पूछा, 'आज डिनर में क्या खाओगे ?' जाने क्यों राम उन्ही पर बरस पड़ा-' आप एक दिन अपने मन से खाना नही बना सकती क्या? रोज मेरी परीक्षा क्यों लेती हैं।' मां समझ गई कि यह गुस्सा उसके दफ्तर का है। ऐसा पहले भी कई बार हो चूका था।  मां ने पूछा, 'तुम्हे अपना दफ्तर अच्छा नही लगता, तो छोड़ दो।  दूसरी नोकरी मिल जाएगी।  बाहर निकलोगे नही, तो पता कैसे चलेगा कि बाहर है क्या?' राम ने कहा, 'अगर इतना ही आसान होता, तो  दो साल पहले ही छोड़ चूका होता।' मां  ने राम से पूछा, 'एक कहानी सुनोगे?' राम ने हां में सिर हिला दिया।  मां बोली, 'एक बार एक आदमी पहाडों पर सैर करने गया।  उसने देखा, चारो तरफ ऊंचे-ऊंचे पहाड़, खूब हरे-भरे पेड़ और एकदम ताजा हवा।  वह उन हसीन वादियो का आनंद ले रहा था कि एक तेज आवाज पहाड़ो से टकराकर गूंजती हुई उसके कानो में पड़ी। ऐसा लगा, जैसे कोई चीख रहा हो - 'आजादी...... आजादी....। वह आदमी हैरान हो गया। वह ढूंढने लगा कि आखिर यह आवाज कहां से आ रही है। काफी ढूंढने के बाद उसे पिंजरे में बन्द एक तोता मिला, जो चिल्ला रहा था- 'आजादी...... आजादी....। उस तोते को आजाद करने से पहले ही वह आदमी इसी आनंद से भर गया कि वह उस तोते को आजाद करने जा रहा है। मुस्कुराते हुए उसने पिंजरे का दरवाजा खोल दिया। पर तोता तो डरकर अंदर की तरफ भाग गया। आदमी काफी देर तक उसे पुचकारता रहा। तोता पिंजरे में बैठा वही राग अलापता रहा-'आजादी... आजादी...।' काफी देर कोशिश करने के बाद आदमी ने हाथ अंदर डाला, तोते को पकड़ा और बाहर निकालकर एक पहाड़ से नीचे की तरफ छोड़ दिया, ताकि तोता उड़ जाए।  ऐसा करके उसे बहुत सुकून मिला।  वह उस रात पास के एक गांव में रुक गया।  सुबह होने से पहले आदमी को फिर वही आवाज सुनाई दी-' आजादी... आजादी...।'  वह दोबारा पिंजरे के पास जाने लगा, पर देखा कि पिंजरे का दरवाजा खुला है और तोता वापस पिंजरे के अंदर बैठकर चिल्ला रहा है - 'आजादी... आजादी...।' राम ने पूछा- मां, आप क्या कहना चाह रही हैं? मां बोली-'बेटा, हमारा मन भी इस तोते की तरह है, जिसे पिंजरे में रहने का अभ्यास हो चूका है। वह सरे कष्ट सह सकता है, पर पिंजरा छोड़कर जाने को तैयार नही हो पाता। पिंजरा छोड़ोगे, तभी तो पता चलेगा कि बाहर दुनिया कितनी खूबसूरत हैं।  यह सिर्फ तुम ही कर सकते हो।  कोई और नही।      
     
               परिस्थिति को अनुकुल बनाने की कोशिश स्वयं करनी चाहिए।  

14 अक्टू॰ 2016

जीवन.....

जीवन समस्या नही है कि समाधान ढूंढे, वास्तविकता है, जिसे अनुभव करना चाहिए।

                                     . .... सोरेन किर्केगार्द

मेरी नजर में.......

मेरी नजर में सबसे समझदार इंसान वो है,
जो कम से कम महीनों में एक बार खुद को मुर्ख कहता है।

इंसान को अपनी मुसीबतें......

इंसान को अपनी मुसीबतें गिनने की आदत होती है। वह खुशनुमा लम्हो का हिसाब नही रखता।अगर वह इसका भी हिसाब रखेगा तो पता चलेगा, कि हर मुसीबत के बाद कितनी सारी खुशियां आती हैं। 

13 अक्टू॰ 2016

छप्पर पर खोया ऊंट

खुरासान का बादशाह रात अपने महल में सोया हुआ था। अंधेरी रात थी, आधी रात हो रही थी। उसे छत पर किसी के चलने की आवाज सुनाई दी। उसने ध्यान से सुना, वाकई छप्पर पर कोई चल रहा है। पुराना महल था। दीवारें और छत मिटटी और पत्थर के बने थे। छप्पर हिलने लगा। बादशाह ने पूछा, कौन है ऊपर इस अँधेरी रात में? ऊपर से आवाज आई, मैं हूं एक नागरिक। राजा ने पूछा, नागरिक हो, तो ऊपर छप्पर पर क्या कर रहे हो?  क्या तुम चोर हो? उसने कहा कि नही, मैं चोर नही हूं। मेरा ऊंट खो गया है, मैं उसे खोज रहा हूं। राजा ने कहा, पागल हो गए हो क्या? ऊंट छप्पर के ऊपर कैसे चढ़ सकता है?
उस व्यक्ति ने कहा, मैं तो आपका ही अनुकरण कर रहा हूं। बादशाह हैरान हुआ। वह बिस्तर पर लेटे- लेटे ही बोला, तुम जो कह रहे हो, वह मेरी समझ मे नही आ रहा। छत पर घूम रहे व्यक्ति ने कहा अगर आप सिंहासन पर बैठकर सोचते हैं  कि सुख मिल जाएगा, अगर आप सोचते हैं कि धन मिलने से सुख मिल जायेगा, और अगर आप सही है, तो फिर मैं कौन-सी भूल कर रहा हूं? छप्पर पर खोया हुआ ऊंट भी मिल सकता हैं। राजा सोचने लगा, वह आदमी पागल नही मालूम होता। राजा भागकर बाहर आया और सिपाहियों से कहा, छत पर घूम रहे उस व्यक्ति को पकड़ो। सब दौड़े। लेकिन बहुत खोजने पर भी छप्पर पर वह आदमी नही मिला।
छप्पर पर ऊंट खोजने से नही मिलेगा। छप्पर पर ऊंट खोता भी नही है। लेकिन हम सब लोग ऊंट को वही खोज रहे हैं।